Hello Everyone....I was out of writing for the past 4 months as I was more busy with my Job, & I'm loving it. However, I've taken out sometime & wrote some lines on the Person who is waiting & wanting to meet his Dream girl(which everybody dreams to), who is just a Beautiful Virtual Image in his Mind. This person believes that she would be like this & that, & whenever he thinks about her or describes herself, everything stops for him. I just gone with the thought, & converted it into a poem, by not making it lengthy.....Hope You would like it.
लिखता हुँ उनको, तो शाम हो जाती है,
पुकारता हूँ जब, तो जवाब नहीं मिलता।
लिखता हुँ उनको, तो शाम हो जाती है,
पुकारता हूँ जब, तो जवाब नहीं मिलता।
ग़ुम हुँ मैं कहीं या डूब गया हुँ सोच में,
छायी है बेचैनी सी,जाने क्यों आराम नहीं मिलता।
पर आहट क्यों महसूस होती है,
और वक़्त क्यों है बदल जाता।
क्यों दिन अब लगे हैं छोटे,
क्यों रात भर मैं सो नहीं पाता।
इतने क्यों मैं क्यों पाल रहा हुँ,
गैरत और हैरत क्यों डाल रहा हुँ।
अनजान हुँ अभी भी उस चेहरे से,
पर उसकी ओर बढ़ता जा रहा हुँ।
नाजाने कब मुलाकात होगी उस सपने से हक़ीकत में,
जिसने डाल रखा है मुझे तो मुसिबत में।
खैर होना अब इस मुसिबत में शामिल भी मीठा लगता है,
सपनो में जो आती है उससे यूँ मिलना ही अच्छा लगता है।
इसलिए शायद हर बार उनको;
लिखता हूँ तो शाम हो जाती है,
और पुकारता हुँ तो जवाब नहीं मिलता।
छायी है बेचैनी सी,जाने क्यों आराम नहीं मिलता।
पर आहट क्यों महसूस होती है,
और वक़्त क्यों है बदल जाता।
क्यों दिन अब लगे हैं छोटे,
क्यों रात भर मैं सो नहीं पाता।
इतने क्यों मैं क्यों पाल रहा हुँ,
गैरत और हैरत क्यों डाल रहा हुँ।
अनजान हुँ अभी भी उस चेहरे से,
पर उसकी ओर बढ़ता जा रहा हुँ।
नाजाने कब मुलाकात होगी उस सपने से हक़ीकत में,
जिसने डाल रखा है मुझे तो मुसिबत में।
खैर होना अब इस मुसिबत में शामिल भी मीठा लगता है,
सपनो में जो आती है उससे यूँ मिलना ही अच्छा लगता है।
इसलिए शायद हर बार उनको;
लिखता हूँ तो शाम हो जाती है,
और पुकारता हुँ तो जवाब नहीं मिलता।