Thursday, November 7, 2013

Ahista Ahista.........

आहिस्ता आहिस्ता चलते रहे हम,
उस रात की ख़ामोशी में ढलते रहे हम.
हलकी हलकी हवायें जो बह रही थी,
हमें छूने का शुक्रिया उन्हें करते रहे हम.
आहिस्ता आहिस्ता चलते रहे हम,
उस रात की ख़ामोशी में ढलते रहे हम।


मुलाकात हुई थी जुगनुओं से मेरी,
छुप छुप के दिख कर, थे मुझे चिढ़ा रहे।
बात पते कि मुझे समझ में आयी,
कि जीवन में अँधेरा है ज्यादा रौशनी है कम।
अंधेरों से ना डर, बस बढ़ाये जा कदम,
फिर आहिस्ता आहिस्ता चलने लगे हम,
उस रात की ख़ामोशी में ढलते रहे हम।



तारों को हँसता देख चाँद भी मुस्कुराने लगा,
किसी तारे ने मज़ाक किया था शायद,सोच के ऐसा लगा।
यूँ लगा के अँधेरे में भी थमता नहीं सफ़र,
प्रयास करते रहना ही असली में है दम।
बस फिर से दोबारा बढ़ने लगे हम,
आहिस्ता आहिस्ता चलते रहे हम,
उस रात की ख़ामोशी में ढलते रहे हम।

 

लहरों कि छपा छप्प ने मेरी नींद उड़ा रखी थी,
और रात भी तेज़ी से, भागे जा रही थी।
वो अँधेरा भी मुझे कुछ अदभुत दिखा रहा था,
बड़े प्यार से मुझे अनुभव करा रहा था।
मन ने कहा मेरे-यह वक़्त है मेरी जान, यह गुज़र ही जाएगा,
चाहे जितना हो उजाला, यह अँधेरा हमेशा सिखाएगा।
बस हार न तू ग़म से, बस इतना ही रह नरम,
खुश रह के ख़ुश करना ही है तेरा धर्म।
इसलिए आहिस्ता आहिस्ता चलते रहे हम,
उस रात की ख़ामोशी में ढलते रहे हम