One day, A friend of mine sent me a msg, that-"I need an inspirational poem, that too, very urgently...Jo dil ko Chhuu jaye, Kal office mein bolna hai". I read this msg after 4 hrs, & then I logged in, to write a Poem which was just an instant work(approx 10 mins), like making a Maggie....hahaha :);)
बढ़े चल ए मितरा, बढे चल .......
चट्टान जैसी परेशानियों से,
इन जाल बुने बेईमानियों से।
बन के तूफ़ान तू बढ़ निकल,
बढ़े चल ए मितरा, बढ़े चल ........
देख ज़रा पानी की धार को,
ऐसा कुछ तू खुद को बना,
है फैली हुई हवा हर तरफ जैसे,
वैसे ही हर जगह तू भी समां।
पहुँच जा बुलंदियों के तू शिखर,
बढ़े चल ए मितरा, बढ़े चल ........
जैसे ओस रौशनी में चमकता,
भीतर से वैसे भी तू बन जा,
और बना कर उस रौशनी को ज्वाला,
घर का सूरज भी तू बन जा।
पर रह सावधान इस प्रदूषित वातावरण से,
जिसमें है अनैतिक इंसान समूह भी घुसा,
काट बुराई के काटों को जो पास आये,
बस उन सुगन्धित फूलों सा और महकता जा।
आये जो ये बातें समझ तो कर पहल,
लडखडाये 1-2 बार तो क्या,तू इस बार जा संभल,
बढ़े चल ए मितरा, बढ़े चल ........
बढ़े चल ए मितरा, बढ़े चल ........
बढ़े चल ए मितरा, बढे चल .......
चट्टान जैसी परेशानियों से,
डर की उन गहराईयों से,
दे मार छलांग पार कर,इन जाल बुने बेईमानियों से।
बन के तूफ़ान तू बढ़ निकल,
बढ़े चल ए मितरा, बढ़े चल ........
देख ज़रा पानी की धार को,
ऐसा कुछ तू खुद को बना,
है फैली हुई हवा हर तरफ जैसे,
वैसे ही हर जगह तू भी समां।
पहुँच जा बुलंदियों के तू शिखर,
बढ़े चल ए मितरा, बढ़े चल ........
जैसे ओस रौशनी में चमकता,
भीतर से वैसे भी तू बन जा,
और बना कर उस रौशनी को ज्वाला,
घर का सूरज भी तू बन जा।
पर रह सावधान इस प्रदूषित वातावरण से,
जिसमें है अनैतिक इंसान समूह भी घुसा,
काट बुराई के काटों को जो पास आये,
बस उन सुगन्धित फूलों सा और महकता जा।
आये जो ये बातें समझ तो कर पहल,
लडखडाये 1-2 बार तो क्या,तू इस बार जा संभल,
बढ़े चल ए मितरा, बढ़े चल ........
बढ़े चल ए मितरा, बढ़े चल ........