Sunday, October 21, 2012

Dilasa.....Ek Chhoti Si Aasha........

This one is very special for me, because these poems consists that feel of pain, which I felt when I got hurt by the Evil World. Then the +vity inside me told me, that, this is not the end, You are not made to be broken, Come-On, Stand again & move....
Then I also written these following lines-

For the moment, when I stood & people laughed, I felt ashamed,
           However, this time with Many, But, I Fell again.
Lost Hope & Control for moment,when I saw people Laughing
       But Can't tell those Safe-Suit people,that I LiVED Da PaIN.....
Enjoy this Poem.......

एक छोटी सी आंस,
                                      एक बड़ी सी प्यास,
कभी जैसे मीठी सी पप्पी,
                                      तो कभी जादू की झप्पी।
देदे ये मुसीबत को भी झांसा,
                                      कुछ ऐसी है इसकी परिभाषा,
               है ये दिलासा, एक छोटी सी आशा।

कड़ाके की ठण्ड पड़ी हो,
                                      और कोई ओढ़ाय कम्बल जैसे,
मानो के कोई ख़राब प्लेन हो,
                                      जो कर जाए लैंडिंग जैसे तैसे।
गुदगुदा कर हंसा जाए,
                                      टच है वैसा मस्ती भरा सा,
               है ये दिलासा, एक छोटी सी आशा।

कभी माँ के गोद सा है ये एहसास,
                                      तो कभी पिता के जोश दिलाने का है ये अंदाज़,
सचिन जैसे करे बाउंड्री पार,
                                      वैसी ही कुछ है इसकी धार।
स्वाद भी कुछ ऐसा,
                                      के मीठे को चखा हो ज़रा सा,
               है ये दिलासा, एक छोटी सी आशा।

कभी कार्टून सा हंसती,
                                      तो कभी लोरी सी सुलाती,
क़दमों को भी बढ़वाती,
                                      और जीत के पास ले जाती।
आँखों, कानों,होंठों, की नहीं,
                                      ये रुहानियत की है भाषा,
               है ये दिलासा, एक छोटी सी आशा।

झम्म झम्म सी बारिश में,
                                      जैसे कोई छत दिख जाए,
कभी घनघोर अंधेरे में जैसे,
                                      कोई मोमबत्ती की रौशनी दिखाये।
हर दिल के दर्द हलके कर दे,
                                      नजाने मलहम है ये किस तरह का,
               है ये दिलासा, एक छोटी सी आशा।

Monday, September 17, 2012

Badhe Chal Aye Mitra....

One day, A friend of mine sent me a msg, that-"I need an inspirational poem, that too, very urgently...Jo dil ko Chhuu jaye, Kal office mein bolna hai". I read this msg after 4 hrs, & then I logged in, to write a Poem which was just an instant work(approx 10 mins), like making a Maggie....hahaha :);)

बढ़े चल ए मितरा, बढे चल .......

चट्टान जैसी परेशानियों से,

डर की उन गहराईयों से,
                  दे मार छलांग पार कर,
                  इन जाल बुने बेईमानियों से।
बन के तूफ़ान तू बढ़ निकल,
बढ़े चल ए 
मितरा, बढ़े चल ........


देख ज़रा पानी की धार को,
ऐसा कुछ तू खुद को बना,
                  है फैली हुई हवा हर तरफ जैसे,
                  वैसे ही हर जगह तू भी समां।
पहुँच जा बुलंदियों के तू शिखर,

बढ़े चल ए मितरा, बढ़े चल ........

जैसे ओस रौशनी में चमकता,
भीतर से वैसे भी तू बन जा,
                  और बना कर उस रौशनी को ज्वाला,
                  घर का सूरज भी तू बन जा।
पर रह सावधान इस प्रदूषित वातावरण से,
जिसमें है अनैतिक इंसान समूह भी घुसा,
                  काट बुराई के काटों को जो पास आये,
                  बस उन सुगन्धित फूलों सा और महकता जा।
आये जो ये बातें समझ तो कर पहल,
लडखडाये 1-2 बार तो क्या,तू इस बार जा संभल,
                  बढ़े चल ए 
मितरा, बढ़े चल ........

                  बढ़े चल ए मितरा, बढ़े चल ........

Wednesday, August 15, 2012

Mere Desh se achcha aur koi Desh Kahan.....

ये जो मैं लिख रहा हूँ, वो उन सब भारतियों क लिए है जो अपने देश को शायद भूलते जा रहे हैं और या फिर इस देश में रहना उनकी मात्र मज़बूरी ही है। मैं ये नहीं कहता के आप सब इस देश से प्यार नहीं करते, क्योंकि जो नहीं करते वो ये पूरा पढ़ भी ना पाएंगे। जो गलत है उसे रोकने की कोशिश करें बस यही विनती आप से करता हूँ।

लेके भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद का नाम पहले
मैं अपना पहलु पेश करता हूँ,
हूँ मैं भारतवासी और इस हक से
ऐसे शहीद वीरों को करोड़ों नमन करता हूँ।

है आज आज़ादी का दिन,
             पर हिंदुस्तान तो आज भी कैदी है।
भुगत रहा है ये देश भ्रष्टाचार को,
             जिसे उसके लोगों ने खुद शय दी है।
मुसीबतों से जूझते रहने के बाद भी,
             सब कहते हैं 'मैं मस्त हूँ यहाँ'।
और कहते दिल इनके मज़बूरी में,
             मेरे भारत से अच्छा और कोई देश कहाँ।


लाख बुराई गिनते हैं सब,
             जब थक के शाम हो जाती है।
देख के मंत्रियों क घोटाले फिर,
             दिल से आह.... निकल जाती है।

कोई खुश है अपने परिवार में,
             तो कोई अकेला तन्हाईयों में ही खुश है वहां।

बस सोचते ये के सबसे प्यारे लोग हैं ये अपने मेरे,
             और मेरे देश से अच्छा और कोई देश कहाँ।


कोई करता झगडे जात-पात के नाम पे,
             तो किसी का मुद्दा छूत-अछूत होता है।
21वी सदी है आ चुकी अब,
             फिर भी आवाम यहाँ पुराने ज़माने में सोता है।
पेट भरने की बस चाहत है इन्हें,
             देश के पिछड़ने का नहीं है इनको गुमां।
गरीबी से मरे लोग चाहे पर, अमीर बोले,
             मेरे देश से अच्छा और ......... कहाँ।

पिछड़ों को आगे करने की नजाने कैसी मज़बूरी है,
             तभी दुसरे मुद्राओं से 'रुपय' की तबियत में बहुत कमजोरी है।
काबिल फिरे रोड में इस वजह से,
             और साकार करने के बजाये सरकार सिर्फ ये कहे 'बेरोज़गारी हटाना ज़रूरी है'।
कुर्सी के झगड़ों में सिमटा हुआ,
             शैतानों से है ये देश सना।
90% निकले पापी और फिर भी,
             मेरे देश से अच्छा ...............कहाँ।

2g घोटाले और कहीं मोबाइल नेटवर्क के पंगे,
             जगह जगह आये दिन दंगे, हैं ले जा रहे हमें किस ओर।
मुट्ठी भर खिलाडी हैं इस प्रतिभा के समुन्दर में,
             क्यूँ बढ़ावे (awareness) का नहीं है यहाँ दौर।
बेईमानी का चोगा ओढे,
             क्यूँ जी रहा है ये अपना जहाँ।
सरकारें हैं लूटती आखिर हद तक,आम आदमी हो जाता है कुर्बान,
             फिर भी कहते हैं मेरे देश से अच्छा............कहाँ।

आओ यारों चलो कुछ ठाने,
             फिर से बना दे इस देश को जवान।
थोडा खुद को फना कर इस देश पर,
             आओ हटायें ये बेहूदगी का कला धुवां।
हस के फिर सुबह होगी, और हस्ते ढलेगी शाम,
             सोच के देखो, कितना सुनेहरा होगा वो समां।
फिर कहेंगे गर्व से, है ये मेरा वतन, नाम इसका 'हिन्दुस्तान',
             और मेरे देश से अच्छा और कोई देश कहाँ........
                                                                    
और कोई देश कहाँ........।

A very Happy Independence Day to u all. May all Indians feel proud to be an Indian by helping our nation in growth in any field except Unemployment & Corruption.......

         Thank U All for reading.
            Neeraj Shrivastava.

Sunday, August 12, 2012

Wo Bachpan Fir Yaad Aayega......

Kb bheege the aakhiri baar baarish mein,
Lagta hai jaise bas kal parson ki baat hai.
Yaad karo pichhli baarish ko to chehra khil jayega,
Wo jo bachpan tha..... wo fir yaad aayega.

Ho jaate the geelay aur padti thi fir daant,
Behti si mastiyon ki fir hoti thi shuruwaat.
Kaale badal jaisa wo aankhon mein yaadien barsayega,
Yaad hai wo bachpan.......Haan wo fir yaad aayega.

Wo football, wo gully Cricket khelna,
wo gaadiyon k takkar se kichad ko jhelna.
Fir Mausam aya hai din aur shaam ek sa lagte jaayega,
Wo bachpan yaad hai kya...wo fir yaad aayega.

Jawani ki masti ko baandhe hain bachpan ki rassi se,
Pirontey rehna hai unhein in Yaadon ki masti se,
Har Saal mann in mahino mein khushiyaan mehkayega,
Agar Yaad hai wo bachpan to wo fir yaad aayega.

Mehsus karte hain har baar un galiyon mein khel ka shor,
Wo TV pe Malgudi wo Mogli aur kabhi wo Sherkhan ka roar.
Aaj fir wah sab jeene ko dil lalchayega,
Yaad hai na wo bachpan...... wo fir yaad aayega.

Wo baarish ki shaamon ko sair pe jaana,
Kabhi thandi hawa Saugaat mein to kabhi halki geelay mitti ki khusbu mil jaana.

Thak k ruke jo fir halwai k dukaan par to samosa,kachaudi dikh jaayega,
Fir chakhh kr garam jalebi mann 1 pe ruk na paayega.
Yaad karo ab Pichhli baarish ko to chehra khil jaayega,
Hai wo pyara bachpan yaad, Haanji..... Wo fir se yaad aayega...